वैश्य अग्रवाल
रायबहादूर अभिनन्दन प्रसाद रईस का खानदानए गोरखपुर
यह खानदान लम्बे अरसे से गोरखपुर में निवास कर रहा है। आपकी गौत्र जिंदल है तथा आप भी दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के अनुयायी है। इस परिवार के पूर्वज बाबू पाश्र्वदास तथा उनके बन्धुओ ने गोरखपुर में एक जैनमन्दिर बनवाया। आपके पुत्र बा0 भवानी प्रसाद हुए। बाबू भवानी प्रसाद के रायबहादुर अभिनन्दप्रसाद और महावीर प्रसाद नामक 2 पुत्र हुए। इनमें बाबू महावीर प्रसाद का जल्दी ही स्वर्गवास होगया था।
रायबहादुर अभिनन्दनप्रसाद- आपका आरंभिक जीवन एक मामूली मुख्त्यारी से आरम्भ होता है। लेकिन आपने अपनी तीछण बुद्धि एवं कार्यकुशलता तथा उच्च अभिलाषाओं के बलपर न केवल गोरखपुर ही में, प्रत्युत यू0 पी0 के अग्रवाल समाज में एक प्रभावशाली आसन प्राप्त किया। वैसे आप कोई विशेष पढे़ लिखे पुरूष नही थे, लेकिन आपकी सूझ के आगे हाई कोर्ट के बैरिस्टर भी दंग रहते थे। आपने वकालात में बहुत सम्पत्ति पैदा की, जमीदारी खरीद की तथा गवर्नमेंट, जनता और धर्म में काफी नाम व यश प्राप्त किया। आप गोरखपुर के आनरेरी फस्र्टक्रास मजिस्ट्रेटए आनरेरीमुसिफ, बार एसोसिएशन के सभापतिए अग्रवाल हितकारिणी सभा के उपप्रमुखए विष्णु भगवान कमेटी के मन्त्रीए डिस्ट्रिस्ट को आपरेटिव्ह बैक के डायरेक्टरए एडवायजरी कमेटी कोर्ट ग्राफ बोर्ड के सदस्य , और लेजिस्लेटिव्ह असेम्बली के मेम्बर थे। सन् 1910 में डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव्ह बैक गोरखपुर ने बहुमूल्य सेवाओ के बदले में अपको एक सार्टिफिकेट देकर अपकी इज्जत की थी। यूरोपीय युद्ध के पूर्व आपको सरकार से राय बहादुरी का खिताब प्राप्त हुआ था।
यूरोपीय युद्ध के समय आपने भारत सरकार की तन मन धन से सेवाएं की। आप स्थानीय बारलोन कमेटी के 4 साल मन्त्री रहे। प्रथम तथा द्वितीय वारलोन और विक्टरीलोन कमेटियो के जिला मन्त्री की हैसियत से आपने अनूठी सेवाएं की और भी बहुत सी वारफंड कमेटियो के आप मन्त्री थे। गोरखपुर जिले में जो वारलोन और भरती के काम मे सफलता मिली उसका प्रधान श्रेय आप ही को है और स्वयं आपने लोन में 31 हजार रूपया भी दिया। इसी तरह विभिन्न वार फंड में आपने सहायताएं दी। आपकी इन सेवाओ के बदले में गवर्नरए
लेफ्टिनेट गवर्नरए कमिश्नरए ने सार्वजनिक धन्यवाद दिया। भारत सरकार ने भी एक बार एक बैज आपको भेंट दिया।
सन् 1914 में गोरखपुर में असुरन के पोखरे से एक श्याम पत्थर की अनुपमए विशाल और ऐतिहासिक श्री विष्णु भगवान की प्रतिमा निकली। इस मूर्तिको बडे 2 जौहरिओ ने और इतिहासज्ञोने अमूल्य बतलाया। इस प्रतिमा को सरकार ने जप्तकर लिया तथा लखनऊ के अजायब घर में रखकर विलायत भेजने के लिए आर्डर दे दिया। ऐसी परिस्थिति में गोरखपुर जिले की जनता ने रायबहादुर अभिनंदनप्रसाद के नेतृत्व में बहुत बडी आवाज और हजारो हस्ताक्षरो का एक बडा निवेदन कलेक्टर और लाट साहब के पास भेजा। इस आन्दोलन में लम्बे वाद् विवाद के पश्चात् बाबू अभिनंदनप्रसाद जी को सफलता मिली तथा वह मूर्ति पीछी जनता को वापस मिली। उस समय रानी सहिबा मझोली ने बडी लागत से एक विशाल मंदिर बनवा कर उपरोक्त प्रतिमा को प्रतिश्चित कराया। यहा पर लोग बिदेशो से भी दर्शनो के लिये आते है। इस प्रकार गोरखपुर के इतिहास में आपका यह गौरव पूर्ण कार्य हुआ है।
वैसे तो बाबू अभिनंदनप्रसाद धर्मानुयायी थे, पर आपका सभी धार्मिक संस्थाओ और समुदायो से सन्निकट सम्बन्ध रहता था। जैन समाज ने आपको धर्मवीर के पद से अलंकृत किया था।